मेरे ख्याल से........

Wednesday 23 May 2012


 हिंदी पुस्तकों की डिजिटल साफ़्ट कापी

दोस्तों 
दरअसल  हिंदी पुस्तकों को इ-बुक(पुस्तक) में परिवर्तित करने मे मुख्य समस्या पुस्तकों की डिजिटल साफ़्ट कापी उपलब्ध होने से है । साफ़्ट कापी से यहाँ मेरा तात्पर्य स्केन की हुई पीडीएफ़(PDF) पुस्तक से नहीं बल्कि ओ सी आर(OCR)  या टाइपिंग से तैयार की इलेक्ट्रानिकली डिजिटाइस्ड वर्ड फ़ाइल(Electronically Digitised Word File) से है क्योंकि उसे ही एक वास्तविक इ-बुक या इ-पुस्तक (जैसी कि आपने अंग्रेजी या अन्य भाषाओं मे देखी होंगी एवं यहाँ मेरे ब्लाग पर भी देखते हैं) परिवर्तित किया जा सकना सम्भव होता है ।
उदाहरण स्वरूप यहाँ मेरे ब्लाग पर, मेरी पिछली पोस्ट में उपन्यास भूना दरअसल स्केन की हुई पीडीएफ़(PDF) कापी से इ-बुक(पुस्तक) में परिवर्तित किया हुआ है। आप सहज ही देख सकते हैं कि इसे, मैं अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद अन्य पुस्तकों के मुकाबले उतना सुन्दर रूप न दे सका। 
अब ये वैज्ञानिक जगत का दुर्भाग्य है कि ओ सी आर(OCR) अपने अविष्कार के इतने वर्षों बाद भी प्राचीन युग की शैशवावस्था में ही है, परन्तु सौभाग्य से भारत देश में टाइपिस्टों की कोई कमी नहीं है । पर क्या लाभ, बड़े प्रकाशक बन्धु तो इस डर से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं कहीं कोई उनकी पुस्तकें इन्टरनेट से अपह्र्त(Pirate) न कर ले और उनका सारा परिश्रम व्यर्थ जाये, हालाँकि वो इस तरह का झटका झेल सकने एवं इसका प्रतिरोध करने में समर्थ हैं । छोटे प्रकाशकों के पास अपनी गौरवपूर्ण परम्परा को जीवित रखने की अदम्य इच्छा के बावजूद अपनी सामर्थ्य से अधिक कुछ नया करने की न सुविधा है न सामर्थ्य क्योंकि उपरोक्त या किसी भी प्रकार के व्यावसायिक धक्के (Commercial Setback) मिलने पर तो वो अपनी छोटी सी जमापूँजी से भी हाथ बैठेंगे। हाँ, यदि सरकारी सहायता मिले तो वे जिस प्रकार अपनी गौरवपूर्ण परम्परा को जीवित रखे हुए हैं उसी प्रकार अपनी पुस्तकों को दिगदिगन्त में प्रचारित करने वाले इस कार्य मे अवश्य ही रुचि लेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है । अब इसका क्या किया जाय कि भारत सरकार को भी इस कार्य में कोई विशेष रुचि दिखाई नहीं देती । ऐसा मैं इस बिना पर कह रहा हूँ क्योंकि भारत सरकार की डिजिटल लाइब्रेरी ओफ़ इन्डिया भी पुरानी जीर्ण शीर्ण पाण्डुलिपियों की पीडीएफ़(PDF) कापी बना कर सन्तुष्ट हो गयी दिख रही है वरन जितना पैसा ओ सी आर (OCR) विकास (Development) मे लग रहा है उतने में ही ये सारी पुस्तकें आसानी से कटे फ़टे शब्दों, मात्राओं को पुनर्जीवित कर टाइप कराकर डिजिटल साफ़्ट कापी मे परिवर्तित कराई जा सकती हैं और साथ ही बेकारी से परेशान बेचारे टाइपिस्टों को रोजगार भी मिल सकता है।
देखें कब जागता है हिन्दुस्तान ।
फ़िलहाल तो इन्टरनेट पर पहले से प्रदर्शित पुस्तकों की इ-बुक देख पढ़ कर सन्तोष करें ।  
पण्डित सूर्यकान्त 
कुछ और पुस्तकें प्रस्तुत हैं-


 

 15.                    अद्-भूत-सुनील डोईफोडे




Sunday 13 May 2012

हिन्दी साहित्य और इ-पुस्तकें



दोस्तों
हमारा हिन्दी साहित्य सब प्रकार से समृद्ध एवं अत्यन्त विशाल है, साथ ही अनेक कठिनाइयों, विषमताओं के बावजूद नये लेखकों का आगमन एवं नवीन सृजन भी जारी है। विषमतायें अधिकतर प्रचार प्रसार से सम्बन्धित हैं, उदाहरण के तौर पर पुराने लेखकों के अलावा जो नये उच्च कोटि के लेखक आते हैं वो अपनी पुस्तकें इन्टरनेट पर विज्ञापित करते हैं परन्तु अक्सर पाठक जगत ने उनका नाम तक नहीं सुना होता इसलिए इन्टरनेट पर पुस्तक का विज्ञापन देख कर भी वो उसे नहीं खरीदता क्योंकि यही पता नहीं होता कि ये लेखक उसकी रुचि का साहित्य लिखता भी है या नहीं । हालाँकि कुछ लेखकों एवं प्रकाशकों ने इन्टरनेट पर पीडीएफ़ पुस्तकों के माध्यम से प्रयास किया है परन्तु आज के इलेक्ट्रानिक मीडिया के युग में वो दाल में नमक के बराबर भी नहीं है। दरअसल आवश्यकता है ऐसी सर्व सुलभ इ-पुस्तकों की जिन्हें बुक रीडर/टेबलेट पर सर्व साधारण पाठकगण पढ़ सकें, जिससे वो लेखकों के बारे में जाने और पसन्द आने पर बेधड़क उस लेखक की पुस्तकें खरीद या मंगवा सकें साथ ही इ-पुस्तक की उपयोगिता, सुलभता से केवल परिचित हों बल्कि उन्हें इसकी आवश्यकता भी महसूस हो क्योंकि अपनी सभी पसन्दीदा पुस्तकों को एक बुक रीडर/टेबलेट में हर समय साथ रखने और मनचाहे समय पर मनचाही पुस्तक पढ़ने के मानसिक सन्तोष से हिन्दी पाठक जगत सामान्यत: अभी अनिभिग्य ही है। न सिर्फ़ मेरे ख्याल से वरन मेरा मानना है इ-पुस्तकों की उपयोगिता महसूस होने पर हिन्दी पाठकजगत को स्वाभाविक रूप से इनकी आवश्यकता महसूस होगी और वो प्रकाशकों से इस प्रकार की पुस्तकों की मांग करेगा। साथ ही अन्य भाषाओं के साहित्य की तरह हमारे हिन्दी साहित्य का भी प्रचार प्रसार होगा और हमारा हिन्दी साहित्य विश्व साहित्य की कतार में अग्रगण्य होगा।

अपने इसी ध्येय को इस ब्लाग द्वारा आगे बढ़ाने के लिए मैंने इन्टरनेट पर प्रकाशकों/लेखकों द्वारा पहले से सर्वसाधारण को पढ़ने हेतु उप्लब्ध कराई गई कुछ पुस्तकों को पीडीएफ़ के साथ साथ पुस्तक(E-Pub format) के रूप में बदल के प्रस्तुत कर रहा हूँ जैसा कि मैंने कहा कि ये पुस्तकें इन्टरनेट पर पहले से ही उप्लब्ध हैं अत: सभी कानून कायदे के शौकीन बन्धु बान्धवों से करबद्ध प्रार्थना है कि कापीराइट का विवाद खड़ाकर समय नष्ट करने एवं इस पुनीत कार्य में (जिसमें मेरा कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं है) बाधा डालने का प्रयास करें। पाठक गणों से अनुरोध है कि यदि ऐसी कोई हिन्दी की पुस्तक(E-Pub format) आपके पास हो या यदि कोई पाठक बन्धु मुझ से अच्छी पुस्तक बनाना जानते हों तो मुझे अवश्य अवगत करायें और इस पुनीत कार्य में अपना योगदान दें

पं0 सूर्यकान्त

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      13      शून्य- सुनील डोईफोडे