हिंदी पुस्तकों की डिजिटल साफ़्ट
कापी
दरअसल हिंदी पुस्तकों को इ-बुक(पुस्तक) में
परिवर्तित करने मे मुख्य समस्या पुस्तकों की डिजिटल साफ़्ट कापी उपलब्ध होने से है । साफ़्ट कापी से यहाँ मेरा
तात्पर्य स्केन की हुई पीडीएफ़(PDF) पुस्तक से नहीं बल्कि ओ सी आर(OCR) या टाइपिंग से तैयार की इलेक्ट्रानिकली डिजिटाइस्ड
वर्ड फ़ाइल(Electronically
Digitised Word File) से है क्योंकि उसे ही एक वास्तविक इ-बुक या इ-पुस्तक (जैसी कि आपने अंग्रेजी या अन्य भाषाओं मे देखी होंगी एवं यहाँ मेरे ब्लाग पर भी देखते हैं) परिवर्तित
किया जा सकना सम्भव होता है ।
उदाहरण स्वरूप यहाँ मेरे ब्लाग पर, मेरी पिछली पोस्ट में उपन्यास भूतनाथ दरअसल
स्केन की हुई पीडीएफ़(PDF) कापी से इ-बुक(पुस्तक) में परिवर्तित किया हुआ है। आप सहज ही देख सकते हैं कि इसे,
मैं अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद अन्य पुस्तकों के मुकाबले उतना सुन्दर रूप न दे
सका।
अब ये वैज्ञानिक जगत का दुर्भाग्य है कि ओ सी आर(OCR) अपने अविष्कार के इतने
वर्षों बाद भी प्राचीन युग की शैशवावस्था में ही है, परन्तु सौभाग्य से भारत देश
में टाइपिस्टों की कोई कमी नहीं है । पर क्या लाभ, बड़े प्रकाशक बन्धु तो इस डर से
बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं कहीं कोई उनकी पुस्तकें इन्टरनेट से अपह्र्त(Pirate) न कर ले और उनका सारा
परिश्रम व्यर्थ जाये, हालाँकि वो इस तरह
का झटका झेल सकने एवं इसका प्रतिरोध करने में समर्थ हैं । छोटे प्रकाशकों के पास
अपनी गौरवपूर्ण परम्परा को जीवित रखने की अदम्य इच्छा के बावजूद अपनी सामर्थ्य से
अधिक कुछ नया करने की न सुविधा है न सामर्थ्य क्योंकि उपरोक्त या किसी भी प्रकार
के व्यावसायिक धक्के (Commercial
Setback) मिलने पर तो वो अपनी छोटी सी जमापूँजी से भी हाथ
बैठेंगे। हाँ, यदि सरकारी सहायता मिले तो वे जिस प्रकार अपनी गौरवपूर्ण परम्परा को
जीवित रखे हुए हैं उसी प्रकार अपनी पुस्तकों को दिगदिगन्त में प्रचारित करने वाले
इस कार्य मे अवश्य ही रुचि लेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है । अब इसका क्या किया जाय कि भारत सरकार को भी इस
कार्य में कोई विशेष रुचि दिखाई नहीं देती । ऐसा मैं इस बिना पर कह रहा हूँ
क्योंकि भारत सरकार की डिजिटल लाइब्रेरी ओफ़ इन्डिया भी पुरानी जीर्ण शीर्ण पाण्डुलिपियों की पीडीएफ़(PDF) कापी बना कर सन्तुष्ट हो गयी दिख रही है वरन जितना पैसा ओ
सी आर (OCR) विकास (Development) मे लग रहा है उतने में ही ये सारी पुस्तकें आसानी
से कटे फ़टे शब्दों, मात्राओं को पुनर्जीवित कर टाइप कराकर डिजिटल साफ़्ट कापी मे परिवर्तित कराई जा सकती हैं और साथ ही बेकारी से परेशान बेचारे टाइपिस्टों को रोजगार भी मिल
सकता है।
देखें कब जागता है हिन्दुस्तान ।
फ़िलहाल तो इन्टरनेट पर पहले से प्रदर्शित पुस्तकों की इ-बुक देख पढ़ कर सन्तोष करें ।
पण्डित सूर्यकान्त
कुछ और पुस्तकें प्रस्तुत हैं-